विश्व पूँजीवाद की संरचना एवं कार्यप्रणाली में बदलाव तथा भारत का मजदूर आन्दोलन : क्रान्तिकारी पुनरुत्थान की चुनौतियाँ
विश्व पूँजीवाद की संरचना एवं कार्यप्रणाली में बदलाव तथा भारत का मजदूर आन्दोलन : क्रान्तिकारी पुनरुत्थान की चुनौतियाँ द्वितीय अरविन्द स्मृति संगोष्ठी में प्रस्तुत आलेख तपीश मेन्दौला बिगुल मजदूर दस्ताआज जिसे भूमण्डलीकरण कहा जा रहा है, वह साम्राज्यवाद के आगे की कोई नयी पूँजीवादी अवस्था नहीं बल्कि साम्राज्यवाद का ही एक नया दौर है। साम्राज्यवाद की बुनियादी अभिलाक्षणिक विशिष्टताएँ आज भी यथावत् मौजूद हैं। इतिहास को अनुभववादी नजरिये से देखने वालों को वर्तमान और भविष्य चाहे जितना भी अन्धकारमय नजर आये, वैज्ञानिक नजरिया यही बताता है कि यह युग साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रान्तियों का ही युग है। विश्व पूँजीवाद का दीर्घकालिक और असाध्य ढाँचागत संकट इस सच्चाई का सबसे बड़ा प्रमाण है कि पूँजीवाद अमर नहीं है, न ही यह मानव इतिहास की आखिरी मंजिल है। बीसवीं शताब्दी की मजदूर क्रान्तियों की हार भी कोई अन्तिम चीज नहीं है। यह मजदूर क्रान्तियों के पहले चक्र का अन्त है, जिसके सार-संकलन के आधार पर इक्कीसवीं शताब्दी की नयी मजदूर क्रान्तियों के सूत्रपात से लेकर विजय तक ऐतिहासिक महाभियान आगे डग भरेगा।