आमन्त्रण – चतुर्थ अरविन्द स्मृति संगोष्ठी

     

चतुर्थ अरविन्द स्मृति संगोष्ठी

जाति प्रश्‍न और मार्क्‍सवाद

(1216 मार्च, 2013)
चण्डीगढ़

प्रिय साथी,

अपने प्रिय दिवंगत कॉमरेड अरविन्द की स्मृति में इस बार चतुर्थ अरविन्द स्मृति संगोष्ठी का आयोजन हम चण्डीगढ़ में कर रहे हैं।

कॉमरेड अरविन्द भारत के मज़दूर आन्दोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन और वैकल्पिक जन मीडिया आन्दोलन के एक जुझारू और मेधावी सेनानी थे। अपने इस युवा साथी के असमय निधन के बाद, हमने उनकी स्मृति में, हर वर्ष भारतीय क्रान्ति की किसी ज्वलन्त-जीवन्त समस्या या प्रश्‍न पर संगोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया था। पहली (एक दिवसीय) और दूसरी (तीन दिवसीय) संगोष्ठियाँ क्रमशः जुलाई 2009 और जुलाई 2010 में दिल्ली और गोरखपुर में हुईं। ये दोनों संगोष्ठियाँ भूमण्डलीकरण के दौर में भारतीय मज़दूर आन्दोलन की दिशा, सम्भावनाओं, समस्याओं और चुनौतियों पर केन्द्रित थीं। तीसरी तीन दिवसीय संगोष्ठी (जुलाई 2011) लखनऊ में हुई जो भारत में जनवादी अधिकार एवं नागरिक स्वतन्त्रता आन्दोलन की दशा-दिशा, समस्याओं, चुनौतियों और सम्भावनाओं पर केन्द्रित थी।

इन तीन सफल संगोष्ठियों के बाद हम चौथी अरविन्द स्मृति संगोष्ठी चण्डीगढ़ में 12-16 मार्च 2013 के दौरान कर रहे हैं जिसका विषय हैः ‘जाति प्रश्‍न और मार्क्‍सवाद’। विषय की व्यापकता, इसके विविध आयामों, इस विषय से जुड़े विवादों के इतिहास और इसकी जटिलता को देखते हुए, हर पहलू पर विस्तृत एवं सन्तोषजनक बहस-मुबाहसे के लिए हमने इस बार संगोष्ठी की अवधि बढ़ाकर पाँच दिन कर दी है। अब तक संगोष्ठी का आयोजन हम कॉमरेड अरविन्द की पुण्यतिथि (24 जुलाई) के अवसर पर किया करते थे। इस बार से हम यह आयोजन उनकी जन्मतिथि (12 मार्च) पर करना शुरू कर रहे हैं।

 

जाति प्रश्‍न, विशेषकर दलित प्रश्‍न आज भी भारतीय समाज का एक ऐसा जीवन्त-ज्वलन्त प्रश्‍न है, जिसे हल करने की प्रक्रिया के बिना व्यापक मेहनतकश अवाम की वर्गीय एकजुटता और उनकी मुक्ति-परियोजना की सफलता की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए, जो मार्क्‍सवाद को सच्चे अर्थों में आज भी (अकादमिक विमर्श की जुगाली या महज़ वोट बैंक की राजनीति का एक औज़ार मानने के बजाय) क्रान्तिकारी व्यवहार का मार्गदर्शक मानते हैं, उनके लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वे मार्क्‍सवादी नज़रिये से जाति प्रश्‍न के हर पहलू की सांगोपांग समझदारी बनाने की कोशिश करें, शोध-अध्ययन और वाद-विवाद करें।

इस प्रश्‍न पर एक लम्बे समय से संगोष्ठियाँ-परिचर्चाएँ होती रही हैं। लेकिन प्रायः कुछ अवस्थिति पत्रों और संक्षिप्त बहसों में इस गम्भीर ऐतिहासिक प्रश्‍न के हर पहलू को ‘इति सिद्धम’ शैली में निर्णायक ढंग से निपटा दिया जाता रहा है। गम्भीर शोध और पूर्वाग्रह-मुक्त लम्बी बहसों का अभाव रहा है। एक ओर यान्त्रिक वर्ग अपचयनवादी (क्लास रिडक्शनिस्ट) तरीके से जाति प्रश्‍न को देखने या ख़ारिज करने का नज़रिया मौजूद रहा है, तो दूसरी ओर मार्क्‍सवाद और अम्बेडकरवाद-नवअम्बेडकरवाद के बीच तालमेल कराने और असुविधजनक प्रश्‍नों से कतरा जाने की अवसरवादी प्रवृत्ति मौजूद रही है। अमेरिकी समाजशास्त्रीय स्कूल के विद्वान जाति प्रश्‍न का अध्ययन करते हुए मार्क्‍सवादी वर्ग-विश्‍लेषण की प्रणाली को लम्बे समय से ख़ारिज करते रहे हैं। उनकी सन्तुलित मार्क्‍सवादी समालोचना प्रस्तुत करने की आज भी ज़रूरत है। हाल के दशकों में ‘सबऑल्‍टर्न स्टडीज़’ और ‘आइडेण्टिटी पॉलिटिक्‍स’ सहित विभिन्‍न ”उत्तर-” विचारधाराओं के द्वारा जाति और जेण्डर के प्रश्‍न को समझने का अकादमिक चलन ख़ूब फैशन में रहा है। इन विचार-सरणियों की विभिन्‍न मार्क्‍सवादी अवस्थितियों से प्रचुर समालोचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं, पर जाति प्रश्‍न की विविध उत्तर-आधुनिक, सबऑल्‍टर्न व्याख्याओं की विसंगतियों पर काफ़ी-कुछ लिखने की ज़रूरत है और इन स्कूलों द्वारा प्रस्तुत मार्क्‍सवाद की आलोचना की सन्तुलित आलोचना का काम भी काफ़ी हद तक छूटा हुआ है। ऐसे मार्क्‍सवादी अकादमीशियनों की कमी नहीं है जो सबऑल्‍टर्न स्टडीज़ और ‘आइडेण्टिटी पॉलिटिक्‍स’ की पद्धति की मार्क्‍सवादी पद्धति के साथ खिचड़ी पकाकर ”वर्ग अपचयनवादी दोषों” को दुरुस्त करने की कोशिश कर रहे हैं। अतः इस विषय पर विस्तृत बहस-मुबाहसे की और अधिक ज़रूरत है।

पहला सवाल तो यही है कि क्या मार्क्‍सवाद की द्वन्द्वात्मक ऐतिहासिक विश्‍लेषण पद्धति और मार्क्‍सवादी प्रवर्ग (वर्ग, उत्पादन सम्बन्ध, आधार, अधिरचना, आदि) भारतीय सामाजिक संरचना और जाति प्रश्‍न को समझने के लिए अपर्याप्त या अनुपयुक्त हैं? जाति और वर्ग के अन्तरसम्बन्ध को कैसे देखा जाना चाहिए? मार्क्‍सवादी इतिहासकारों ने जाति प्रश्‍न के उद्भव और विकास-प्रक्रिया की व्याख्या किस प्रकार की है? जाति व्यवस्था अपने जन्म काल से लेकर अब तक की अवधि में, नष्ट होने के बजाय निरन्तर मौजूद रही है, लेकिन यथावत, जड़वत मौजूद रहने की बजाय हर उत्तरवर्ती सामाजिक-आर्थिक संरचना द्वारा सहयोजित की जाती रही है, उनके बीच ‘आर्टिक्युलेशन’ होता रहा है और यह स्वयं को पुनर्नवा बनाती रही है। ग़ौरतलब-बहसतलब सवाल यह है कि मार्क्‍सवाद इस परिघटनात्मक प्रक्रिया की व्याख्या किस प्रकार करता है तथा अन्य वैचारिक अवस्थितियों से इसकी व्याख्या किस प्रकार की जाती रही है!

मार्क्‍सवाद के साथ अम्बेडकरवाद के सम्बन्ध को प्रायः एक उलझा हुआ और असुविधजनक प्रश्‍न माना जाता रहा है। अम्बेडकर और अम्बेडकरवादियों-नवअम्बेडकरवादियों की अवस्थितियों के सांगोपांग मार्क्‍सवादी विश्‍लेषण एवं समालोचना का कापफी हद तक अभाव रहा है। बातें प्रायः सरसरी तौर पर या टुकड़े-टुकड़े में होती रही हैं। हाल के वर्षों में बहुतेरे मार्क्‍सवादी विद्वान और संगठन दोनों पक्षों की दार्शनिक-राजनीतिक-सामाजिक अवस्थितियों की विवेचना की गहराई और विस्तार में गये बिना लोकरंजक ढंग से मार्क्‍सवाद और अम्बेडकरवाद में समन्वय की कोशिशें करते रहे हैं। अम्बेडकरवादी अवस्थिति से बिना विस्तृत विश्‍लेषण के मार्क्‍सवाद पर प्रतिकूल टिप्पणियाँ की जाती रही हैं और अर्थवादी यान्त्रिकता तथा वर्ग अपचयनवाद के आरोप लगाये जाते रहे हैं। ज़रूरत इस बात की है कि अम्बेडकर की दार्शनिक अवस्थिति (उनकी विश्वदृष्टि और पद्धतिशास्त्र) का विश्‍लेषण किया जाये, उनकी इतिहास-दृष्टि की समालोचना प्रस्तुत की जाये, उनकी राजनीतिक अवस्थिति और उनके अर्थशास्त्र की पड़ताल की जाये, सामाजिक प्रश्‍नों पर उनके नज़रिये का विश्‍लेषण किया जाये तथा यह देखा जाये कि जाति-उन्मूलन तथा दलित मुक्ति की उनकी परियोजना क्या है, वह कितनी तर्कसम्मत, इतिहाससंगत और व्यावहारिक है! अम्बेडकर और अम्बेडकरवादियों ने मार्क्‍सवाद की जितनी आलोचनाएँ प्रस्तुत की हैं, उन पर विस्तृत विश्‍लेषण प्रस्तुत करने की ज़रूरत है। जो अम्बेडकरवादी और विभिन्‍न दलितवादी विचार-सरणियाँ हैं, उनकी ओर से भी सांगोपांग विश्‍लेषण-आलोचना की यही पद्धति अपनायी जानी चाहिए। तभी सार्थक बहस हो सकेगी और सही निष्कर्षों तक पहुँचना सम्भव हो सकेगा।

यह बेहद ज़रूरी है कि पश्चदृष्टि से देखते हुए, जाति प्रश्‍न और दलित प्रश्‍न पर कम्युनिस्ट आन्दोलन की सैद्धान्तिक अवस्थितियों और व्यावहारिक सरगर्मियों का ऐतिहासिक विश्‍लेषण एवं समाहार प्रस्तुत किया जाय। वर्तमान भारत में जाति प्रश्‍न और दलित प्रश्‍न का स्वरूप क्या है, विभिन्‍न कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी संगठनों की तत्सम्बन्धी अवस्थिति क्या है, भारतीय मेहनतकश जनसमुदाय के मुक्ति संघर्ष से दलित मुक्ति या सम्पूर्ण जाति प्रश्‍न का क्या रिश्ता है, और भारतीय समाज में जाति-उन्मूलन की सही, वैज्ञानिक, व्यावहारिक परियोजना क्या हो सकती है — यह विस्तृत बहस-मुबाहसे का एक अहम विषय है। वर्ग और जाति के अन्तर्सम्बन्धों को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में, अवस्थित करके समझे बिना उपरोक्त एजेण्डा पूरा नहीं किया जा सकता।

विगत दशकों के दौरान, अम्बेडकर के नाम पर चलने वाले प्रभावी राजनीतिक संगठन निकृष्ट कोटि की बुर्जुआ संसदीय राजनीति के पंककुण्ड में गले तक डूबे रहे हैं। कुछ अन्य हैं, जिनका सामाजिक आधर अत्यधिक संकुचित रहा है। ज़्यादातर, अम्बेडकरवाद-नवअम्बेडकरवाद और सबऑल्‍टर्न स्टडीज़, ‘आइडेण्टिटी पॉलिटिक्‍स’ आदि ”उत्तर-” विचारधराओं से प्रेरित दलितवाद के विविध रूपों की अवस्थिति समाज-विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में ही रही है। सामाजिक-राजनीतिक आन्दोलन के रूप में इनकी अनुपस्थिति एक विचारणीय प्रश्‍न है। साहित्य में दलित साहित्य अपनी वैचारिकी के साथ मौजूद है और दलित सौन्दर्यशास्त्र पर भी काफ़ी-कुछ लिखा पढ़ा गया है। विचारणीय प्रश्‍न ये हैं कि दलित साहित्य के यथार्थवाद का अपना स्वतन्त्र प्रवर्ग किस रूप में बनता है, दलित साहित्य और दलित आलोचनाशास्त्र की सैद्धान्तिकी क्या है, तथा दलित सौन्दर्यशास्त्र की दार्शनिक अवस्थिति क्या है?

कुल मिलाकर जाति प्रश्‍न और मार्क्‍सवादपर केन्द्रित इस पाँच-दिवसीय संगोष्ठी के बहसतलब केन्द्रीय मुद्दे ये हैं:

–  डा. अम्बेडकर की दार्शनिक अवस्थिति, इतिहासदृष्टि, राजनीतिक विचार एवं व्यवहार, आर्थिक सिद्धान्त एवं नीतियाँ, सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना विषयक विचार और जाति-उन्मूलन और दलित-मुक्ति विषयक उनकी परियोजनाएँ – एक मार्क्‍सवादी समालोचना। इन्हीं प्रश्‍नों पर मार्क्‍सवादी अवस्थितियों की अम्बेडकरवादी एवं अन्य दलितवादी अवस्थितियों से समालोचना। मार्क्‍सवाद-विषयक अम्बेडकर के विचारों का विश्‍लेषण। इन सभी प्रश्‍नों पर बहस।

–  जाति प्रश्‍न की द्वन्द्वात्मक ऐतिहासिक भौतिकवादी समझ। नवअम्बेडकरवादी अवस्थितियाँ, उनकी मार्क्‍सवादी समालोचना और उन पर बहस। दलित प्रश्‍न पर सबऑल्‍टर्न स्टडीज़, ‘आइडेण्टिटी पॉलिटिक्‍स’ आदि उत्तरआधुनिक अवस्थितियाँ, अन्य समाजशास्त्रीय स्कूल और नवमार्क्‍सवादी अवस्थितियां, उनकी मार्क्‍सवादी समालोचना और उन पर बहस।

–  जाति प्रश्‍न पर मार्क्‍सवादी इतिहास लेखन, उसका अम्बेडकरवादी प्रतिपक्ष और इन पर बहस।

–  जाति प्रश्‍न और भारत का कम्युनिस्ट आन्दोलन। इतिहास का सिंहावलोकन – अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी और जाति प्रश्‍न, संशोधनवादी पार्टियाँ और जाति प्रश्‍न, जाति प्रश्‍न पर चुनिन्दा कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी संगठनों की अवस्थितियाँ, जाति उन्मूलन की कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी परियोजना।

–  दलित साहित्य और आलोचना की सैद्धान्तिकी। दलित सौन्दर्यशास्त्र की दार्शनिक अन्तर्वस्तु।

 

हम यह आमन्त्रण काफ़ी पहले भेज रहे हैं ताकि आपको अपना आलेख/पेपर तैयार करने और बहस के लिए तैयारी का भरपूर समय मिल सके। आपके आने और पेपर तैयार करने की सूचना यदि हमें 25 फरवरी तक मिल जाये तो बेहतर होगा। यदि आप पेपर 28 फरवरी तक भेज दें तो सत्रों की योजना बनाने में हमें आसानी होगी।

हम आपसे इस संगोष्ठी में भागीदारी का हार्दिक आग्रह करते हैं। आप अपने पहुँचने की तिथि, ट्रेन, बस आदि की सूचना नीचे दिये गये किसी भी मोबाइल नम्बर या लैण्डलाइन नम्बर पर दे सकते हैं। कोई भी सूचना देने-लेने का काम आप नीचे दिये ईमेल पतों पर भी कर सकते हैं। हम आपको आत्मीयतापूर्ण आतिथ्य का भरोसा देते हैं और आश्वस्त करते हैं कि आपको किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी।

हम आपके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

                                                – हार्दिक अभिवादन सहित,

मीनाक्षी (प्रबन्ध न्यासी)
आनन्द सिंह (सचिव)
कात्यायनी, सत्यम (सदस्य)

अरविन्द स्मृति न्यास

कार्यक्रम

12 – 16 मार्च, 2013

प्रथम सत्र: प्रातः 10 बजे से अपराह्न 1 बजे तकद्वितीय सत्र: अपराह्न 3 बजे से रात्रि 8 बजे तक

भोजनावकाश: अपराह्न 1 बजे से 3 बजे तक

द्वितीय सत्र में चाय का अन्तराल: शाम 6 बजे

आयोजन स्थल:

सोहन सिंह भकना भवन, सेक्टर 29-डी (ट्रिब्यून कॉलोनी के सामने), चण्डीगढ़

 

आप आयोजन समिति के निम्नलिखित किसी भी सदस्य से, या न्यास के लखनऊ कार्यालय से सम्पर्क कर सकते हैं:

मीनाक्षी – फ़ोनः 9212511042, ईमेलः meenakshy@arvindtrust.org
आनन्द सिंह – फ़ोनः 9689034229, ईमेलः anand.banaras@gmail.com
कात्यायनी – फ़ोनः 9936650658, ईमेलः katyayani.lko@gmail.com
सत्यम – फ़ोनः 8853093555, ईमेलः satyamvarma@gmail.com

लखनऊ कार्यालय का पता:

69 ए-1, बाबा का पुरवा, पेपर मिल रोड, निशातगंज, लखनऊ – 226006
ईमेलः info@arvindtrust.org,  arvindtrust@gmail.com

वेबसाइटः http://arvindtrust.org

‘आमन्त्रण – चतुर्थ अरविन्द स्मृति संगोष्ठी’ की पीडीएफ फाइल

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