Category Archives: लेख व बहसें

मजदूर आन्दोलन की नयी दिशा : सम्भावनाएँ, समस्याएँ और चुनौतियाँ

मजदूर आन्दोलन की नयी दिशा : सम्भावनाएँ, समस्याएँ और चुनौतियाँ द्वितीय अरविन्द स्मृति संगोष्ठी में प्रस्‍तुत आलेख शेख अंसार जनरल सेक्रेटरी, प्रगतिशील इंजीनियरिंग श्रमिक संघ, छत्तीसगढ़ उपाध्‍यक्ष, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चाइतिहास इस बात का गवाह है कि मजदूर आन्दोलन दुनिया में कहीं भी, ठहराव को तोड़कर लम्बी छलाँग ले पाने में और नयी ऊँचाइयों को छू पाने में तभी सफल हुआ है, जब उसने अपने अन्दर की विजातीय प्रवृत्तियों से, तमाम गैरसर्वहारा लाइनों से निर्मम, समझौताहीन संघर्ष किया है। जब ठहराव का दौर होता है और भटकावों का बोलबाला होता है तो मजदूर आन्दोलन के भीतर हावी कठमुल्लावाद, बौध्दिक अवसरवाद, अर्थवाद-संसदवाद, स्वयंस्फूर्ततावाद तथा ''वामपन्थी'' और दक्षिणपन्थी भटकावों की रंग-बिरंगी अभिव्यक्तियों के खिलाफ केवल वही लोग मोर्चा ले पाते हैं, जिनमें तोहमतों-गालियों-छींटाकशियों की परवाह किये बिना धारा के विरुध्द तैरने का सच्चा लेनिनवादी साहस हो।

विश्व पूँजीवाद की संरचना एवं कार्यप्रणाली में बदलाव तथा भारत का मजदूर आन्दोलन : क्रान्तिकारी पुनरुत्थान की चुनौतियाँ

विश्व पूँजीवाद की संरचना एवं कार्यप्रणाली में बदलाव तथा भारत का मजदूर आन्दोलन : क्रान्तिकारी पुनरुत्थान की चुनौतियाँ द्वितीय अरविन्द स्मृति संगोष्ठी में प्रस्‍तुत आलेख तपीश मेन्दौला बिगुल मजदूर दस्ताआज जिसे भूमण्डलीकरण कहा जा रहा है, वह साम्राज्यवाद के आगे की कोई नयी पूँजीवादी अवस्था नहीं बल्कि साम्राज्यवाद का ही एक नया दौर है। साम्राज्यवाद की बुनियादी अभिलाक्षणिक विशिष्टताएँ आज भी यथावत् मौजूद हैं। इतिहास को अनुभववादी नजरिये से देखने वालों को वर्तमान और भविष्य चाहे जितना भी अन्‍धकारमय नजर आये, वैज्ञानिक नजरिया यही बताता है कि यह युग साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रान्तियों का ही युग है। विश्व पूँजीवाद का दीर्घकालिक और असाध्‍य ढाँचागत संकट इस सच्चाई का सबसे बड़ा प्रमाण है कि पूँजीवाद अमर नहीं है, न ही यह मानव इतिहास की आखिरी मंजिल है। बीसवीं शताब्दी की मजदूर क्रान्तियों की हार भी कोई अन्तिम चीज नहीं है। यह मजदूर क्रान्तियों के पहले चक्र का अन्त है, जिसके सार-संकलन के आधार पर इक्कीसवीं शताब्दी की नयी मजदूर क्रान्तियों के सूत्रपात से लेकर विजय तक ऐतिहासिक महाभियान आगे डग भरेगा।