‘पूंजी कार्यशाला’: 3-9 नवंबर 2019

serveimageअरविन्‍द मार्क्‍सवादी अध्‍ययन संस्‍थान 3 से 9 नवम्‍बर तक लखनऊ में आयोजित होने वाली 7-दिवसीय ‘पूंजी कार्यशाला’ के लिए छात्रों, शोधकर्ताओं और एक्टिविस्‍टों की ओर से आवेदन आमंत्रित कर रहा है। कार्यशाला द्विभाषीय होगी (हिंदी एवं अंग्रेजी) | 

जैसा कि हम सभी जानते हैं, विश्‍व पूंजीवादी व्‍यवस्‍था 2007-8 से ही सर्वाधिक संरचनागत संकट से गुजर रही है। अब मुख्‍य धारा के अर्थशास्त्रियों ने भी उसके उबरने के दावे करने छोड़ दिये हैं। दरअसल, कई अर्थशास्त्रियों के अनुसार, विश्‍व पूंजीवाद एक और आसन्‍न संकट के सामने खड़ा है और वह भी वैश्विक वृद्धि के तथाकथित इंजनों, यानी कि चीन, भारत आदि जैसे देशों में। मोदी के फिर से सत्‍ता में आने के बाद हमें बताया गया है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था भी एक गंभीर मंदी की ओर बढ़ रही है, जैसा कि ऑटोमोबाइल सेक्‍टर, टेक्‍स्‍टाइल सेक्‍टर व अन्‍य अगुवा सेक्‍टरों की बिक्री के आंकड़े दिखला रहे हैं।

पूंजीवाद के बार-बार घटित होने वाले संकटों किसी प्रकार की आकस्मिकता या संधि-बिंदु आधारित सिद्धान्‍त से नहीं व्‍याख्‍यायित किया जा सकता है। जिसे आज ‘दीर्घकालिक मन्‍दी’ कहा जा रहा है, वह 1970 के दशक से ही जारी रही है और इसने दिखलाया है कि इस प्रकार की सारी व्‍याख्‍याएं पूंजीवादी संकटों की कोई भी कारणात्‍मक व्‍याख्‍या पेश नहीं कर पाती हैं। राजनीतिक अर्थशास्‍त्र के अलग-अलग बुर्जुआ स्‍कूल और साथ ही नवउदारवादी अर्थशास्‍त्र भी वैश्विक पूंजीवाद के आवर्ती संकटों और कार्य-प्रणाली का विश्‍लेषण करने के लिए कोई कारगर पद्धति देने में असफल रहे हैं।

राजनीतिक अर्थशास्‍त्र की मार्क्‍स द्वारा पेश की गयी आलोचना आज भी पूंजीवाद के विश्‍लेषण के लिए सर्वश्रेष्‍ठ फ्रेमवर्क देती है, बावजूद इसके कि पूंजीवाद की कार्य प्रणाली में कई अहम बदलाव आए हैं, जैसे कि सूचना तकनोलॉजी में क्रान्ति, संचार व परिवहन क्रान्ति, ‘अफेक्टिव/अभौतिक श्रम’, आदि का उभार। पिछले 15 दशकों से मार्क्‍सवादी राजनीतिक अर्थशास्‍त्र पूंजीवाद के आर्थिक भविष्‍य पथ का कमोबेश सही पूर्वानुमान पेश करता रहा है और अभी भी कर रहा है। यहां तक कि मुख्‍यधारा के अर्थशास्‍त्री भी अब शर्मिंदगी के साथ यह स्‍वीकार कर रहे हैं कि जहां तक मौजूदा आर्थिक व्‍यवस्‍था को समझने का सवाल है, मार्क्‍स के पास कहने के लिए कुछ उपयोगी बातें हैं।

‘पूंजी’ मार्क्‍स की महान कृति है और उनके लगभग पूरे जीवन के शोध और अध्‍ययन का नतीजा है। मार्क्‍स पूंजी की समूची परियोजना को पूरा नहीं कर पाए थे, लेकिन पहला खण्‍ड, जिसे मार्क्‍स अपने जीवन काल में पूरा कर पाए थे, और दूसरे और तीसरे खण्‍ड, जिसे एंगेल्‍स ने संपादित किया, हमें एक ऐसा फ्रेमवर्क मुहैया कराते हैं जिसे मौजूदा विश्‍व पूंजीवाद को समझने के लिए प्रभावी रूप से इस्‍तेमाल किया जा सकता है। यह अकारण नहीं है कि विशेष तौर पर पिछले एक दशक के दौरान मार्क्‍स और खास तौर पर पूंजी में दिलचस्‍पी में अभूतपूर्व और वैश्विक बढ़ोत्‍तरी हुई है। इसका कारण समझना आसान है: मार्क्‍स की पूंजी को समझे बिना, पूंजीवाद को समझने का काम बेहद मुश्किल हो जाता है।

मार्क्‍स की पूंजी को आज पढ़ने की आवश्‍यकता होने का एक अन्‍य कारण है आज तमाम अध्‍येताओं द्वारा पेश किये जा रहे उसके गलत पाठ और व्‍याख्‍याएं और मार्क्‍स के संकट के सिद्धान्‍त, रूपान्‍तरण समस्‍या, मूल्‍य के श्रम सिद्धान्‍त आदि को लेकर जारी बहस। माइकल हाइनरिच से लेकर डेविड हार्वी तक, तमाम व्‍याख्‍याएं विशेष तौर पर नवीनतम संकट के फूटने के बाद से सामने आ चुकी हैं। इन व्‍याख्‍याओं के मद्देनज़र, इस कार्यशाला का एक और लक्ष्‍य है मार्क्‍स की पूंजी की वैज्ञानिक और क्रान्तिकारी अन्‍तर्वस्‍तु को पुन: प्राप्‍त और स्‍थापित करना।

मार्क्‍स की पूंजी की आज भी जारी प्रासंगिकता को देखते हुए, अरविन्‍द मार्क्‍सवादी अध्‍ययन संस्‍थान एक सात दिवसीय पूंजी कार्यशाला का आयोजन कर रहा है ताकि दिलचस्‍पी रखने वाले छात्रों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मार्क्‍सवादी राजनीतिक अर्थशास्‍त्र की मूलभूत सिद्धान्‍तों से अवगत कराया जा सके। यह एक रेजिडेंशियल कार्यशाला है जिसमें अरविन्‍द मार्क्‍सवादी अध्‍ययन संस्‍थान द्वारा भाग लेने वालों को रहने व खान-पान की सुविधा दी जायेगी यात्रा टिकट व आने-जाने की व्‍यवस्‍था संस्‍थान द्वारा नहीं दी जायेगी। यह कार्यशाला हर दिन सुबह 10 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक चलेगी, जिसके बीच खाने व चाय के ब्रेक होंगे।

कार्यशाला का संचालन अभिनव सिन्‍हा करेंगे जिन्‍होंने मार्क्‍स की पूंजी पर व्‍यापक लेखन किया है और देशविदेश में व्‍याख्‍यान दिये हैं। वह सबवर्सिव इण्‍टरवेंशंस, ऑन दि कास्‍ट क्‍वेश्‍चन: टूवर्ड्स ए मार्क्सिस्‍ट अण्‍डरस्‍टैण्डिंग, फासीवाद क्‍या है और इससे कैसे लड़ें? जैसी पुस्‍ताकें के लेखक हैं और प्रसिद्ध मार्क्‍सवादी ब्‍लॉग रेड पोलेमीक के लेखक भी हैं। वह मज़दूरों के मासिक अखबार मज़दूर बिगुल और छात्रों की त्रैमासिक पत्रिका आह्वान के सम्‍पादक भी हैं।

रुचि रखने वाले आवेदक नीचे दिये गये फॉर्म के लिंक पर जाकर फॉर्म को भर सकते हैं। सभी आवेदनों में से 30 आवेदकों के आवेदन स्‍वीकार किये जाएंगे। आवेदन करने की आखिरी तिथि 7 अक्‍टूबर 2019 है।

पंजीकरण शुल्‍क: रु. 8000 मात्र / रु. 6500  सिर्फ विद्यार्थियों के लिये

नोट: चूंकि हमें कई छात्रों से  छात्रों के लिये विशेष  रियायत के अनुरोध प्राप्त हुए हैं,  एआईएमएस ने फैसला किया है कि छात्र होने के वैध दस्तावेज प्रस्तुत करने वाले छात्रों से रु. 6500 पंजीकरण शुल्क लिया जायेगा |

पंजीकरण के लिये लिंक: 

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSfV5VG0AAgzrQ5LM2UVovL8DNMdR2V8hl9B6GLtJIAMiw4ldw/viewform