मुखपृष्‍ठ

सातवीं अन्तरराष्‍ट्रीय अरविन्‍द स्‍मृति संगोष्‍ठी
(29 दिसम्बर 2024 – 2 जनवरी 2025 • हैदराबाद)

विषय: इक्‍कीसवीं सदी में फ़ासीवाद: निरन्‍तरता और परिवर्तन के तत्‍व और समकालीन सर्वहारा रणनीति का प्रश्‍न

दोस्‍तो, कॉमरेड्स,
पूँजीवादी विश्‍व 2006-07 से ही इक्‍कीसवीं सदी की पहली महामन्‍दी से गुज़र रहा है। वस्‍तुत:, 1970 के दशक की शुरुआत से ही दुनिया एक दीर्घकालिक मन्‍दी से गुज़र रही है। इस पूरे दौर में सट्टेबाज़ बुलबुलों के ज़रिये जो काल्‍पनिक पूँजी की तेज़ी के दौर पैदा किये गये, वे लघुजीवी ही सिद्ध हुए और हर बार फूटने पर उन्‍होंने पहले से ज्‍़यादा गहरी मन्‍दी को जन्‍म दिया। पूँजीवादी संकट से पैदा होने वाली अनिश्चितता और असुरक्षा ने क्रान्तिकारी मनोगत शक्तियों के बिखराव और कमज़ोरी के चलते प्रतिक्रियावादी शक्तियों को बल प्रदान किया। यही वजह है कि इसी दौर में दुनिया के विभिन्‍न देशों में फ़ासीवाद-समेत विभिन्‍न धुर-दक्षिणपंथी आन्‍दोलनों का उभार हुआ और उनमें से कुछ सत्‍ता तक भी पहुँच गये या पहुँचने की प्रक्रिया में हैं। ऐसे देशों में भारत, तुर्की, ब्राज़ील, फिलिप्‍पींस जैसे सापेक्षिक रूप से पिछड़े पूँजीवादी देश तो शामिल थे ही, लेकिन अब उनकी कतारों में निकट भविष्‍य में फ्रांस, ऑस्ट्रिया, आदि जैसे उन्‍नत पूँजीवादी-साम्राज्‍यवादी देशों के शामिल होने की आशंका भी स्‍पष्‍ट रूप में प्रकट हो चुकी है।

फ़ासीवाद बस कोई भी धुर-दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया नहीं है। यह धुर-दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया का एक बहुत ही विशिष्‍ट रूप है। दुनिया के कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन के अन्‍दर तमाम हिस्‍सों में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया को असावधान तरीके से फ़ासीवाद की संज्ञा दे देने की एक प्रवृत्ति रही है। यह नुकसानदेह है। वजह यह कि फ़ासीवाद की विशिष्‍टता को समझे बग़ैर उसके विरद्ध कोई कारगर सर्वहारा रणनीति व आम रणकौशल विकसित करने का काम पूरा नहीं किया जा सकता है। इसलिए फ़ासीवाद की आम या सार्वभौमिक विशिष्‍टताओं को पहचानना व अन्‍य धुर-दक्षिणपंथी प्रतिक्रियाओं से उसकी अन्‍तरकारी विशिष्‍टता की पहचान करना हमारे लिए महज़ कोई अकादमिक कवायद नहीं है, बल्कि आज के दौर में केन्‍द्रीय महत्‍व रखने वाला बुनियादी राजनीतिक सवाल है।

जो फ़ासीवाद की सार्वभौमिक विशिष्‍टताओं को पहचानते हैं, उनके सामने भी यह प्रश्‍न है कि क्‍या बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में पैदा हुए फ़ासीवादी व नात्‍सीवादी आन्‍दोलनों व सत्‍ताओं से आज के दौर के फ़ासीवादी उभार व सत्‍ता में कोई अन्‍तर है? क्‍या आज की फ़ासीवादी शक्तियाँ, उनके जीवन-रूप, उनकी कार्यप्रणाली, आज का फ़ासीवादी आन्‍दोलन, आज उसके सत्‍तारोहण के तरीके, और आज की फ़ासीवादी ताक़त में हम परिवर्तन के तत्‍व देखते हैं? या हम आज के फ़ासीवादी उभारों में भी बीसवीं सदी के फ़ासीवादी प्रयोगों की प्रतिलिपि को देखते हैं, देखने का प्रयास करते हैं या उनका इन्‍तज़ार करते हैं जिनके पूरा न होने पर हम फ़ासीवादी सत्‍ता के अस्तित्‍व को ही नकार देते हैं? हमारे देश में मोदी-शाह सत्‍ता को और 1980 के दशक के मध्‍य से लम्‍बी प्रक्रिया में जारी सत्‍तारोहण को किस प्रकार देखते हैं? क्‍या वे महज़ ‘नवउदारवादी पूँजी की तानाशाही है’? क्‍या वह महज़ ‘सर्वसत्‍तावादी धार्मिक कट्टरपंथी सत्‍ता’ है? क्‍या वह केवल एक ‘ऑटोक्रैटाइज्‍़ड सत्‍ता’ है? या फिर वह एक फ़ासीवादी सत्‍ता है, एक नये प्रकार की फ़ासीवादी सत्‍ता जिसकी बीसवीं सदी की फ़ासीवादी सत्‍ताओं, शक्तियों, व आन्‍दोलनों से कुछ महत्‍वपूर्ण विशिष्‍ट भिन्‍नताएँ हैं? हमारे देश की क्रान्तिकारी कम्‍युनिस्‍ट शक्तियों, मार्क्‍सवादी बुद्धिजीवियों व अकादमिकों, शोधकर्ताओं आदि के बीच इसको लेकर कोई एक राय नहीं है। इनके बीच एक व्‍यवस्थित संवाद और बहस-मुबाहिसे की आज शिद्दत से ज़रूरत महसूस की जा रही है। ऐसी बहसों के ज़रिये ही हम आज के सबसे जीवन्‍त व अव्‍यवहित राजनीतिक प्रश्‍न के समाधान की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं: यानी मौजूदा मोदी-शाह सत्‍ता के विरद्ध एक सही क्रान्तिकारी रणनीति व आम रणकौशल को विकसित करना।

इसके अलावा, हमारा देश भी किसी निर्वात में अस्तित्‍वमान नहीं है। वह एक उथल-पुथल भरी साम्राज्‍यवादी-पूँजीवादी दुनिया की श्रृंखला में ही एक निश्चित स्‍थान पर अवस्थित है। निश्चित ही, बाह्य कारक किसी देश में होने वाले विशिष्‍ट आर्थिक, राजनीतिक व सामाजिक परिवर्तनों को अपने आप में और अपने से पैदा या निर्धारित नहीं करते हैं। वे मूलत: और मुख्‍यत: आन्‍तरिक कारकों से पैदा होने वाले और निर्धारित होने वाले परिवर्तनों या गति को किसी न किसी दिशा में प्रभावित करते हैं। वे उन्‍हें त्‍वरण प्रदान कर सकते हैं, उनकी गति को बाधित कर सकते हैं या तात्‍कालिक तौर पर उन्‍हें रोक या पलट भी सकते हैं। लेकिन अन्तिम विश्‍लेषण में, ये आन्‍तरिक कारक ही होते हैं जो किसी भी प्रक्रिया की गति का कारण होते हैं, जबकि बाह्य कारक उसके सन्‍दर्भ या स्थिति को निर्धारित करते हैं और इस रूप में सहायक की भूमिका निभाते हैं। इसलिए हमें पूरी दुनिया में हो रहे परिवर्तनों को भी समझना होगा। तुर्की, ब्राज़ील, फिलिप्‍पींस, रूस, मध्‍य-पूर्व क्षेत्र में, अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस में जो परिवर्तन हो रहे हैं, उन्‍हें भी हमें समझना होगा। एर्दोआन की सत्‍ता का चरित्र क्‍या है? पुतिन की सत्‍ता का चरित्र क्‍या है? फिलिप्‍पींस में मार्कोस जूनियर व दुतेर्ते की सत्‍ता और उनके समान शक्तियों के चरित्र को कैसे समझा जाय? फ्रांस में नेशनल रैली की प्रकृति क्‍या है? यूनान में गोल्‍डेन डॉन जैसी शक्तियों की प्रकृति क्‍या है? ब्राज़ील में बोल्‍सोनारो किस राजनीतिक प्रवृत्ति की नुमाइन्‍दगी करता है? अमेरिका में ट्रम्‍प परिघटना को किस प्रकार समझा जाय? ईरान में खुमैनी-नीत क्रान्ति के बाद से अस्तित्‍वमान रही सत्‍ता का चरित्र क्‍या है? ये सारे सवाल केवल उपरोक्‍त देशों के क्रान्तिकारियों और मार्क्‍सवादी बुद्धिजीवियों व अकादमिकों के लिए जीवन्‍त प्रश्‍न नहीं हैं। ये हमारे लिए भी उतने ही महत्‍वपूर्ण सवाल हैं।

ठीक इन्‍हीं सवालों पर तफ़सील से और तसल्‍ली से बातचीत, विचार-विमर्श और बहस-मुबाहिसे के लिए हम सातवीं अन्‍तरराष्‍ट्रीय अरविन्‍द स्‍मृति संगोष्‍ठी का आयोजन 29 दिसम्‍बर 2024 से 2 जनवरी 2025 के बीच हैदराबाद में कर रहे हैं। हम देश के और दुनिया भर के सभी कम्‍युनिस्‍ट ग्रुपों, संगठनों व पार्टियों को, मार्क्‍सवादी बुद्धिजीवियों को, प्रगतिशील व फ़ासीवाद-विरोधी अकादमिकों, शोधार्थियों व छात्रों को इस संगोष्‍ठी में हिस्‍सा लेने का तहेदिल से न्‍यौता देते हैं। इन पाँच दिनों के दौरान हैदराबाद में रुकने व खाने-पीने की व्‍यवस्‍था अरविन्‍द स्‍मृति न्‍यास द्वारा की जायेगी। आप में से जो भी इस संगोष्‍ठी के लिए अपना पेपर भेजना चाहते हैं, वे 500 शब्‍दों का एक संक्षिप्‍त ब्‍यौरा 30 सितम्‍बर 2024 तक हमारे पास भेज सकते हैं। समूचे पेपर को भेजने की आखिरी तारीख़ 15 नवम्‍बर 2024 है। इन्‍हें आप नीचे दिये गये अरविन्‍द मार्क्‍सवादी अध्‍ययन संस्‍थान के ईमेल पर भेज सकते हैं और दिये गये फोन नम्‍बर/व्‍हाट्सऐप नम्‍बर पर सूचना दे सकते हैं। स्‍वीकृत पेपरों की सूचना 1 दिसम्‍बर से पहले पेपर भेजने वाले सभी साथियों के पास भेज दी जायेगी। कुछ पेपरों को प्रस्‍तुति के लिए और कुछ पेपरों को सदन में वितरण के लिए चुना जायेगा। इसके अलावा, हम आम तौर पर सेमिनार में होने वाली चर्चा व बहस में शिरक़त के लिए सभी दिलचस्‍पी रखने वाले लोगों को न्‍यौता देते हैं।

हम उम्‍मीद करते हैं कि इन पाँच दिनों के बाद हम कहीं ज्‍़यादा स्‍पष्‍ट विचारों के साथ वापस लौटेंगे। चाहे हम सारे सवालों का जवाब न भी ढूँढ पाएँ, तो भी, अगर हम महज़ तमाम सही सवालों को उठा भी पाएँ, तो इसे विनम्रता के साथ अपनी कामयाबी मानेंगे। वैज्ञानिक संधान की शुरुआत समस्‍या की पहचान और सही प्रश्‍न उठाने से ही होती है। लेकिन हम यह भी उम्‍मीद करते हैं कि हम इससे ज्‍़यादा हासिल करने में भी कामयाब होंगे।

दोस्‍तो, कॉमरेड्स! आइये, हमारे समय के इस सबसे जीवन्‍त और ज्‍वलन्‍त राजनीतिक प्रश्‍न पर गहराई से, धैर्य से, गम्‍भीरता से, तफ़सील से और तसल्‍ली से चर्चा और बहस-मुबाहिसा करें। आइये, एक-दूसरे से सीखें। इस मंथन से अवश्‍य हम उन्‍नत राजनीतिक विचारों व समझदारी के साथ अपने मोर्चों पर, अपने कैम्‍पसों में व संस्‍थानों में (जो कि स्‍वयं मोर्चे ही हैं संघर्ष के) लौटेंगे। इस उम्‍मीद के साथ हम आप सबको न्‍यौता देते हैं कि हम अपने इस विनम्र उद्देश्‍य को पूरा करने में कामयाब होंगे।

क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,
आयोजन समिति
सातवीं अन्‍तरराष्‍ट्रीय अरविन्‍द स्‍मृति संगोष्‍ठी (हैदराबाद)
अरविन्‍द मार्क्‍सवादी अध्‍ययन संस्‍थान
(अरविन्‍द स्‍मृति न्‍यास द्वारा संचालित)
ईमेल : arvindtrust@gmail.com
वेबसाइट : http://arvindtrust.org
सम्‍पर्क
आनन्‍द : 9971196111
जयप्रकाश : 9871794036
श्रीजा : 7013936466