संगोष्ठी में प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए मुख्य न्यासी का. मीनाक्षी का वक्तव्य
संगोष्ठी में उपस्थित सभी कामरेड्स,
हार्दिक क्रान्तिकारी अभिवादन!
हम पाँचवीं अरविन्द स्मृति संगोष्ठी में ‘अरविन्द स्मृति न्यास’ की ओर से आपका दिल से स्वागत करते हैं।
हमारे बीच से कामरेड अरविन्द को विदा हुए छह वर्षों का समय बीत चुका है। एक ऐसे योग्य, प्रतिभावान, ज़िम्मेदार और ऊर्जस्वी कामरेड को एक बेहद कठिन समय में खो देना निश्चय ही हमारे लिए बेहद कठिन था और हमारे साहस का इम्तिहान था। हमने पूरे संकल्प और युयुत्सु भावना के साथ शोक को शक्ति में बदलने की कोशिश की और एकदम धारा के विरुद्ध तैरते हुए सर्वहारा वर्ग की मुक्ति और भारतीय क्रान्ति के दिशा-सन्धान से जुड़े सैद्धान्तिक-व्यावहारिक प्रयोगों को आगे बढ़ाने का सिलसिला जारी रखा। हमने कोशिश की कि देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे ऊर्जस्वी क्रान्तिकारी युवाओं की नयी पीढ़ी तैयार की जाये, जो उस मुहिम के सच्चे सिपाही हों जिसमें का- अरविन्द बीस वर्ष की आयु से होकर 44 वर्ष की आयु में आकस्मिक निधन के समय तक लगातार लगे रहे। एक दिवंगत साथी के लिए यही एक सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।
‘अरविन्द स्मृति न्यास’ की स्थापना वर्ष 2009 में की गयी। आज न्यास का अपना मुख्य कार्यालय, पुस्तकालय, अभिलेखागार लखनऊ में है। पुस्तकालय, अभिलेखागार के विस्तार और सुव्यवस्था के लिए अभी काफ़ी कुछ करना है और वह कुछ समय ज़रूर लेगा क्योंकि हम लोगों को सब कुछ कामरेडों की मदद और जनसहयोग से ही करना है। ‘कोई संस्थागत अनुदान नहीं, कोई वेतनभोगी कर्मचारी नहीं’ के जिस सिद्धान्त को हम लोग अपनी अन्य संस्थाओं पर लागू करते हैं, उसे ही दृढ़तापूर्वक ‘अरविन्द स्मृति न्यास’ पर भी लागू करना हमारा संकल्प है। न्यास का घोषित सर्वोपरि काम मार्क्सवादी विचारधारा और सर्वहारा क्रान्ति की सभी समस्याओं पर शोध-अध्ययन के अतिरिक्त युवा कार्यकर्ताओं की नयी पीढ़ी को क्रान्ति के विज्ञान की सुव्यवस्थित शिक्षा देने के लिए ‘अरविन्द मार्क्सवादी अध्ययन संस्थान’ की स्थापना करना है। ऐसे पाठ्यक्रम आधारित छोटे-छोटे सत्रों और कार्यशालाओं का सिलसिला हम जल्दी ही शुरू कर देंगे और यह भी पूरी कोशिश करेंगे कि कुछ ही वर्षों में न्यास के कार्यालय से अलग अध्ययन संस्थान का परिसर विकसित कर लें। इस बात की ताईद हमारे इतिहास को जानने वाले साथी भी करेंगे कि पिछले पच्चीस वर्षों के दौरान, हमने जो भी तय किया, उसे, तमाम दिक्कतों के बावजूद, कुछ देर से ही सही, पूरा ज़रूर किया। हमारा मानना है कि लाइन की अपनी समझ के हिसाब से मेहनतकश जन समुदाय को संगठित करने और ताक़त एवं परिस्थिति अनुसार आन्दोलनात्मक कार्रवाइयों में उतरने और जनता से सीखने तथा परिस्थितियों का ठोस अध्ययन करते रहने के साथ ही क्रान्तिकारियों की नयी उत्तराधिकारी पीढ़ी की निरन्तर भरती, और उनकी राजनीतिक शिक्षा भी बहुत ज़रूरी काम है। साथ ही मार्क्सवाद और अतीत की सर्वहारा क्रान्तियों के शोध-अध्ययन और आपसी बहस-मुबाहसे का काम, विरोधी विचारधाराओं के विरुद्ध संघर्ष करके मार्क्सवाद के प्राधिकार को स्थापित करने का काम और मार्क्सवाद के व्यापक प्रचार-प्रसार का काम लगातार जारी रखना चाहिए। इन कामों के लिए फिलहाल बुर्जुआ जनवादी माहौल का यदि हम पूरा लाभ नहीं उठाते तो एक ऐतिहासिक भूल करेंगे। राजनीतिक लाइन के मतभेद अपनी जगह हैं, पर इस पूरी परियोजना की बहुतेरी चीज़ें साझी हैं। आप उनमें हमारी मदद कर सकते हैं और यदि उन्हें अपना काम मान लें, तो चाहें तो, बहुत कुछ कर सकते हैं।
बहरहाल, समाजवादी संक्रमण की समस्याओं पर केन्द्रित इस संगोष्ठी में पाँच दिनों तक हम साथ-साथ रहेंगे। औपचारिक सत्रों के अतिरिक्त भी बहुत बातचीत का अवसर मिलेगा। हम इस संगोष्ठी में अपनी अवस्थिति स्पष्टता से रखेंगे और यही अपेक्षा भी करेंगे। खुलकर बहस होगी और मतभेदों से गर्मी भी पैदा होगी। पर हम जड़सूत्रवादी तरीक़े से अपने अब तक के निष्कर्षों को अटल-अन्तिम नहीं मानते। मूल विचारधारात्मक प्रश्नों पर सापेक्षिक दृढ़ता के साथ, समाजवादी प्रयोगों की तफ़सीलों पर हमारा अध्ययन अभी लम्बे समय तक जारी रहेगा। इसलिए हम चाहते हैं कि संगोष्ठी में ‘असहमत होने पर भी सहमति’ की भावना के साथ आपसी कामरेडाना विश्वास के साथ बहस-विमर्श हो। यह बहस अभी आगे भी जारी रहेगी। अगली संगोष्ठी तो हम लोग भारतीय समाज की प्रकृति, उत्पादन-सम्बन्ध और क्रान्ति की मंज़िल पर करना चाहते हैं, लेकिन पूरी सम्भावना है कि कुछ वर्षों बाद एक बार फिर समाजवादी संक्रमण के प्रश्न पर हम फिर कुछ और वैचारिक समृद्धि के साथ, और उन्नत स्तर पर बहस के लिए एकत्र हों।
अभी तक अरविन्द स्मृति संगोष्ठी हर वर्ष होती रही है। पर हम लोग ज़मीनी व्यावहारिक कामों की व्यस्तता, पत्र-पत्रिकाओं-पुस्तकों के प्रकाशन और दैनन्दिन राजनीतिक व्यस्तताओं के चलते बहुत ही अधिक खिंच जा रहे हैं और संगोष्ठी के निर्धारित विषय पर आवश्यक सैद्धान्तिक तैयारी और अपनी अवस्थिति की सुव्यवस्थित प्रस्तुति को लेकर काफी कमियों का अहसास ज़्यादातर साथियों को होता रहता है। साथ ही भौतिक तैयारियों, स्रोत-संसाधन जुटाने आदि का बोझ भी काफी रहता है। इसलिए हम लोग सोच रहे हैं कि पाँच दिवसीय संगोष्ठियों के इस सिलसिले को तो लगातार जारी रखा जाये, ज़रूरत पड़ने पर यह अवधि बढ़ाकर सात दिन भी कर दी जाये, पर संगोष्ठी अब हर वर्ष करने के बजाय एक वर्ष के अन्तर पर की जाये। इस पर हम देश भर के बिरादरों, शुभचिन्तकों से भी राय लेंगे।
साथियो, इस संगोष्ठी का आयोजन एक अन्य कारण से भी हम लोगों के लिए भावनात्मक महत्व रखता है। इस संगोष्ठी के बीच में, 12 मार्च को कामरेड अरविन्द की पचासवीं सालगिरह है। उस दिन शाम को उनकी याद में एक छोटा-सा कार्यक्रम रखा जायेगा। यदि वह हमारे बीच होते तो इस वर्ष न केवल अपने जीवन के पचास वर्ष पूरे करते बल्कि कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी पेशेवर कार्यकर्ता के रूप में भी अपने जीवन के तीस वर्ष पूरे करते।
हमें खुशी है कि तीसरी और चौथी संगोष्ठी के आलेखों के संकलन हमने इस वर्ष हिन्दी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित कर दिये। दूसरी संगोष्ठी के आलेखों का संकलन पहले ही प्रकाशित हो चुका था।
एक बार फिर आप सभी साथियों का स्वागत करते हुए और इसमें भागीदारी के लिए धन्यवाद देते हुए मैं संगोष्ठी की औपचारिक शुरुआत की घोषणा करती हूँ।
10-3-2014