समाजवादी संक्रमण और नेपाली क्रान्ति का सवाल
संगीत श्रोता
नेपाल के साथी संगीत श्रोता का ये आलेख मूल नेपाली में लिखा गया था और नरेश ज्ञवाली ने इसका हिन्दी में अनुवाद किया था लेकिन इसमें भी कई अशुद्धियां रह गयी हैं। हमने इसे इसी रूप में अपलोड कर दिया है क्योंकि ये गलतियां ऐसी नहीं जिससे आलेख को समझने में कठिनाई हो। हालाँकि संगीत श्रोता के साथ मिलकर इसे शुद्ध करके हम जल्दी ही पुन: अपलोड कर देंगे।
इक्किसवीं सदी के प्रारम्भिक दशकों में नेपाल के क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन के द्वारा ली गई उचाइँ, वैचारिक बहस का सघनता, संविधान सभा लगायत के कुछ व्यवहारिक नऐं प्रयोगों और शान्तिपूर्ण राजनीति में प्रवेश के साथ आर्जित प्रारम्भिक लोकप्रियता छोटे समय में ही एक गम्भीर धक्के का शिकार हो गया है । बीसवीं सदी के उत्तराद्र्ध में सोभियत संघ और पूर्वी युरोप में कथित रूप से समाजवादी सत्ताओं के गिरने (विघटन) के बाद ‘समाजवाद की असफलता’, ‘इतिहास का अन्त्य’, ‘महाआख्यान का अन्त्य’ जैसे रागों के नगाडे बज रहे निराशाजनक समय में भी सगरमाथा के आधार तल से चोटी की ओर चढ रहे जनयुद्ध ने संसार का ध्यान आकृष्ट किया था । विश्व के क्रान्तिकारियों ने नेपाल की ओर आशावादी नजरों से देख रहे थे– ‘हिमालय की ओर देखो, नयाँ विश्व जन्म ले रहा है ।’ लेकिन आज दो दशक पुरे होते न होते वह आस्था डगमगा रहा है । विश्व के कई भाइचारा पार्टीयाँ निराश है । नेपाल के अन्दर भी पिछले दो दशक के माओवादी आन्दोलन का निर्मम आलोचना तथा गम्भीर समीक्षा शुरु हो चुका है और आन्दोलन नऐं शिरे से पुनर्निर्माण के तयारी में जुटा है । प्रस्तुत छलफल पत्र में समाजवादी संक्रमण को सन्दर्भ के तौर पर रखते हुए नेपाली क्रान्तिकारी आन्दोलन के सम्मुख अपने सपनों के रक्षार्थ कैसी–कैसी चुनौतीयों को सामना किया जाना है, इस विषय में कुछ सवालें को खडी की गई है ।