अन्तरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन की आम दिशा विषयक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का ऐतिहासिक दस्तावेज़ः आधी सदी बाद एक विचारधारात्मक पुनर्मूल्यांकन
लता
हमेशा की तरह आज भी कठमुल्लावाद एवं अतिवामपंथ तथा संशोधनवाद – इन दोनों सिरों के भटकाव विश्व स्तर पर और हमारे देश में भी कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों के बीच मौजूद हैं। लम्बे समय तक कठमुल्लावाद की मौजूदगी या “वाम” दुस्साहसवादी लाइन का ठहराव भी अंततोगत्वा संशोधनवादी भटकाव के दूसरे छोर तक ही ले जाता है। कहा जा सकता है कि आज भी मुख्य ख़तरा भाँति-भाँति के चोले पहनकर आने वाला संशोधनवाद ही है, जिसके विरुद्ध समझौताहीन संघर्ष के बिना कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन का पुनरुत्थान कत्तई सम्भव नहीं। पर साथ ही, दूसरे छोर के भटकाव की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। इसलिए आधी सदी बाद, आज 1963 की आम दिशा के युगांतरकारी दस्तावेज़ को और उसकी व्याख्या करने वाली नौ टिप्पणियों को, नये परिप्रेक्ष्य में, अहसास के नये धरातल के साथ, गहराई से समझने की और उसकी सारवस्तु को आत्मसात करने की ज़रूरत है।