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आमन्त्रण – द्वितीय अरविन्द स्मृति संगोष्ठी
का. अरविन्द की पहली पुण्यतिथि के अवसर पर गत वर्ष 24 जुलाई को नयी दिल्ली में प्रथम अरविन्द स्मृति संगोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसका विषय था: 'भूमण्डलीकरण के दौर में श्रम क़ानून और मज़दूर वर्ग के प्रतिरोधा के नये रूप।' अब इसी विषय को विस्तार देते हुए इस वर्ष 'द्वितीय अरविन्द स्मृति संगोष्ठी' का विषय निर्धारित किया गया है: 'इक्कीसवीं सदी में भारत का मज़दूर आन्दोलन : निरन्तरता और परिवर्तन, दिशा और सम्भावनाएँ, समस्याएँ और चुनौतियाँ।'
प्रथम अरविन्द स्मृति संगोष्ठी की रिपोर्ट
‘विश्व पूंजीवाद की संरचना एवं कार्यप्रणाली तथा उत्पादन-प्रक्रिया में बदलाव मजदूर-प्रतिरोध के नये रूपों को जन्म देगा’ 24 जुलाई , 2009 को नई दिल्ली स्थित गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के सभागार में ‘भूमण्डलीकरण के दौर में श्रम कानून और मज़दूर वर्ग के प्रतिरोध के नये रूप’ विषय पर आयोजितप्रथम अरविन्द स्मृति संगोष्ठी में अधिकांश वक्ताओं ने इस विचार के साथ सहमति ज़ाहिर की कि विश्व पूँजीवाद के असाध्य आर्थिक संकट के आन्तरिक दबाव, विश्व राजनीतिक परिदृश्य में आये बदलावों तथा स्वचालन, सूचना प्रौद्योगिकी एवं अन्य नयी तकनीकों के सहारे अतिलाभ निचोड़ने के नये तौर-तरीकों के विकास के परिणामस्वरूप आज पूँजी की कार्य-प्रणाली और ढाँचे में कई अहम बदलाव आये हैं। ऐसी स्थिति में श्रम के पक्ष को भी प्रतिरोध के नये तौर-तरीके और नयी रणनीति विकसित करनी होगी। यह संगोष्ठी दिवंगत साथी अरविन्द की स्मृति में उनकी प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर राहुल फाउण्डेशन की ओर से आयोजित की गयी थी जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, नोएडा, दिल्ली, बिहार और पंजाब के विभिन्न इलाकों से आये मज़दूर और छात्र-युवा मोर्चे के संगठनकर्ताओं-कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त कई गणमान्य बुद्धिजीवियों ने भी हिस्सा लिया। साथी अरविन्द के व्यक्तित्व और कार्यों से वाम प्रगतिशील धारा के अधिकांश बुद्धिजीवी, क्रान्तिकारी वाम धारा के राजनीतिक कार्यकर्ता और मज़दूर संगठनकर्ता परिचित रहे हैं। वे मज़दूर अखबार ‘बिगुल’ और वाम बौद्धिक पत्रिका ‘दायित्वबोध’ से जुड़े थे। संगोष्ठी की शुरुआत से पहले राहुल फाउण्डेशन की अध्यक्ष कात्यायनी ने साथी अरविन्द को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनका छोटा किन्तु सघन जीवन राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का अक्षय-स्रोत है। वे जनता के लिए जिये और फिर जन-मुक्ति के लिए ही अपना जीवन होम कर दिया। छात्र-युवा आन्दोलन में लगभग डेढ़ दशक तक सक्रिय भूमिका निभाने के बाद मज़दूरों को संगठित करने के काम में वे लगभग एक दशक से लगे हुए थे। दिल्ली और नोएडा से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक कई मज़दूर संघर्षों में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई थी। ऐसे साथी की स्मृति से प्रेरणा और विचारों से दिशा लेकर जन-मुक्ति के रास्ते पर आगे बढ़ते जाना ही उसे याद करने का सही तरीका हो सकता है। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘विहान सांस्कृतिक मंच’ के साथियों ने साथी अरविन्द की स्मृति में शहीदों का गीत प्रस्तुत किया और फिर संगोष्ठी की शुरुआत हुई। विषय-प्रवर्तन संगोष्ठी के विषय का संक्षिप्त परिचय देते हुए संचालक सत्यम ने…