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Category Archives: साथी अरविन्‍द

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Posted by: Arvind trust // साथी अरविन्‍द // November 9, 2010 // Comment
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Posted by: Arvind trust // साथी अरविन्‍द // November 9, 2010 // Comment
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Posted by: Arvind trust // साथी अरविन्‍द // November 9, 2010 // Comment
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Posted by: Arvind trust // साथी अरविन्‍द // August 6, 2010 // Comment
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Posted by: Arvind trust // साथी अरविन्‍द // August 3, 2010 // Comment

'अरविन्‍द स्‍मृति न्‍यास' का सूचना पत्र प्राप्‍त करने के लिए
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कॉमरेड अरविन्‍द के बारे में

का. अरविन्द सच्चे अर्थों में जनता के आदमी थे। 20 वर्ष की छोटी-सी उम्र में उन्होंने क्रान्तिकारी वामपन्थी राजनीति की शुरुआत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में छात्र राजनीति से की थी। इसके बाद वर्षों तक वे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों में नौजवानों को संगठित करते रहे। कुछ दिनों तक उन्होंने गोरखपुर और लखनऊ में भी छात्र-मोर्चे पर काम किया। मऊ ज़िले में ग्रामीण मजदूरों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद वे लम्बे समय तक दिल्ली-नोएडा में औद्योगिक मज़दूरों के बीच काम करते रहे। जीवन के अन्तिम वर्षों में वे गोरखपुर के मज़दूरों और सफ़ाई कर्मचारियों को संगठित करते हुए क्रान्तिकारी छात्र-युवा राजनीति में सक्रिय युवाओं की नयी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे थे।

एक कुशल संगठनकर्ता होने के साथ ही का. अरविन्द सैद्धान्तिक क्षेत्र में भी गहरी पकड़ रखते थे। एक सिद्धहस्त राजनीतिक पत्रकार, लेखक और अनुवादक के रूप में पूरा हिन्दी जगत उनकी क्षमताओं से परिचित था। समाजवाद की समस्याओं, पूँजीवादी पुनर्स्थापना के कारणों और सांस्‍कृतिक क्रान्ति के बारे में उन्होंने गहन शोध-अध्ययन किया था। मज़दूर आन्दोलन की समस्याओं और चुनौतियों पर भी उनका अध्ययन गहरा था और समझदारी व्यापक थी। ‘'नौजवान', 'आह्वान', 'दायित्वबोध', 'बिगुल', आदि कई पत्र-पत्रिकाओं में न केवल वे नियमित लिखते रहे, बल्कि इनके सम्पादन से भी जुड़े रहे। कई युवा साथियों को उन्होंने अपने हाथों गढ़कर संगठनकर्त्ता बनाया और कई को लेखनी पकड़कर लिखना सिखाया। समय-समय पर देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर क्रान्तिकारी वाम धारा के सहयात्रियों से मिलने तथा वाम एकता के लिए विचारधारा और लाइन के सवाल पर बहस चलाने का भी काम वे करते रहे। जो उनसे एक बार भी मिला, वह उन्हें कभी नहीं भुला सका।(...आगे पढें)

संगोष्ठियों में प्रस्‍तुत आलेख

  • >>समाजवादी संक्रमण
    • सोवियत समाजवादी प्रयोग और समाजवादी संक्रमण की समस्याएं : इतिहास और सिद्धान्त की समस्याएं
    • स्तालिन और सोवियत समाजवाद
    • महान बहस के 50 वर्ष
    • नेपाली क्रान्तिः विपर्यय का दौर और भविष्य का रास्ता
    • बोलिवारियन विकल्पः विभ्रम और यथार्थ
    • उत्तर-मार्क्सवाद के ‘कम्युनिज़्म’: उग्रपरिवर्तन के नाम पर परिवर्तन की हर परियोजना को तिलांजलि देने की सैद्धान्तिकी
  • >>जाति प्रश्‍न
    • जाति प्रश्‍न और उसका समाधान : एक मार्क्‍सवादी दृष्टिकोण
    • जाति व्यवस्था-सम्बन्धी इतिहास-लेखनः कुछ आलोचनात्मक प्रेक्षण
    • जाति, वर्ग और अस्मितावादी राजनीति
  • >>जनवादी अधिकार आन्‍दोलन
    • जनवादी अधिकार आन्दोलन के संगठनकर्ताओं और कार्यकर्ताओं के विचारार्थ कुछ बातें
    • भार‍तीय संविधान और भारतीय लोकतंत्र: किस हद त‍क जनवादी?
    • जनवादी अधिकार आन्‍दोलन के सामाजिक-सांस्‍कृतिक कार्यभार
    • जनवादी अधिकारों के लिए आन्दोलन और मज़दूर वर्ग
    • सरकार का युद्ध आतंकवाद के विरुद्ध या जनता के विरुद्ध
  • >>मज़दूर आन्‍दोलन
    • मजदूर आन्दोलन की नयी दिशा : सम्भावनाएँ, समस्याएँ और चुनौतियाँ
    • भारत का मजदूर आन्दोलन और कम्युनिस्ट आन्दोलन : अतीत के सबक, वर्तमान समय की सम्भावनाएँ तथा चुनौतियाँ
    • भूमण्डलीकरण के दौर में मजदूर वर्ग के आन्दोलन और प्रतिरोध के नये रूप और रणनीतियाँ
    • विश्व पूँजीवाद की संरचना एवं कार्यप्रणाली में बदलाव तथा भारत का मजदूर आन्दोलन : क्रान्तिकारी पुनरुत्थान की चुनौतियाँ
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