Category Archives: साम्राज्‍यवाद

आमंत्रण – छठी अंतरराष्‍ट्रीय अरविन्‍द स्‍मृति संगोष्‍ठी

विषय:  इंपीरियलिज्‍़म टुडे: अंडरस्‍टैंडिंग ओरिजिन्‍स, डायनामिज्‍़म्‍स ऐंड मैकेनिज्‍़म्स प्रिय मित्रो-साथियो, हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ साम्राज्‍यवादी युद्ध और लूट-खसोट ख़ासकर एशिया, अफ़्रीका और लातिनी अमेरिका के देशों में लोगों के जीवन को तबाह कर रहे हैं। मध्‍य-पूर्व अमेरिका की साम्राज्‍यवादी आक्रामकता का केन्‍द्र और अन्‍तर-साम्राज्‍यवादी प्रतिस्‍पर्द्धा का अड्डा बना हुआ है। इन देशों की मेहनतकश जनता पिछले कई दशकों से युद्ध की विभीषिका झेल रही है। यूक्रेन और कुछ लातिन अमेरिकी देशों में अमेरिका के हालिया साम्राज्‍यवादी हस्‍तक्षेपों ने उन देशों की अर्थव्‍यवस्‍था और संप्रभुता को तहस-नहस कर दिया है। दुनिया भर के मेहनतकश लोगों के लिए सामान्‍य तौर पर साम्राज्‍यवाद और विशेष रूप से अमेरिकी साम्राज्‍यवाद मुख्‍य शत्रु बना हुआ है। परन्‍तु अपनी सैन्‍य आक्रामकता के बावजूद सामान्‍य तौर पर साम्राज्‍यवाद और विशेष रूप से अमेरिकी साम्राज्‍यवाद पहले से कहीं ज्‍़यादा कमज़ोर हुआ है। हाल के संकट ने इसके खोखलेपन को साफ़ तौर पर दिखाया है। अभूतपूर्व वित्‍तीयकरण, विश्‍व बाज़ारों का एकीकरण, पूँजी का भूमण्‍डलीकरण, श्रम बाज़ारों का विनियमीकरण, सट्टेबाज़ और अनुत्‍पादक पूँजी में ज़बर्दस्‍त बढ़ोत्तरी ने समूची विश्‍व पूँजीवादी व्‍यवस्‍था को बेहद एकीकृत कर दिया है और मंदी तथा ध्‍वंस की सम्‍भावनाएँ और भी ज्‍़यादा बढ़ गयी हैं। मौजूदा संकट विपदा के रूप में 2007-08 में फूट पड़ा। हालाँकि तमाम मार्क्‍सवादी और ‘हेटरोडॉक्‍स’ अर्थशास्त्रियों ने प्रभावी तौर पर यह दलील दी है कि साम्राज्‍यवाद 1970 के दशक से ही संकटग्रस्‍त रहा है। वास्‍तव में वह 1973 के संकट से कभी उबर ही नहीं सका। उसके बाद के सभी उछाल या तो बेहद छोटी अवधि के थे या फिर वे सट्टेबाज़ी के बुलबुलों की वजह से थे। नवउदारवाद, भूमण्‍डलीकरण और वित्‍तीयकरण ने अत्‍यधिक वित्‍तीयकरण के ज़रिये विपदा के रूप में होने वाले ध्‍वंस को विलंबित भर किया और साथ ही साथ उस ध्‍वंस को और अधिक विनाशकारी बना दिया। इसी वजह से अर्थशास्‍त्री इसे ‘महामन्‍दी’ (‘Great Recession’) या ‘दीर्घकालिक मन्‍दी’ (‘Long Depression’) की संज्ञा दे रहे हैं। 2007-08 के संकट के बाद दुनिया भर में कई स्‍वत:स्‍फूर्त पूँजीवाद-विरोधी आन्‍दोलन हुए। परन्‍तु क्रान्तिकारी मनोगत शक्तियों की कमी की वजह से उन आन्‍दोलनों की परिणति या तो पतन और विघटन के रूप में हुई या फिर महज़ सत्‍ता परिवर्तन के रूप में,…