स्तालिन और सोवियत समाजवाद
कीचड़ उछालने और भ्रम पैदा करने के पूरे कारोबार में दो प्रकार के लोग हैं - पहले प्रकार के लोग तो मार्क्सवाद और मज़दूर-वर्गीय आन्दोलन के ऐलानिया शत्रु हैं, जबकि दूसरे प्रकार के लोग ‘‘मार्क्सवादी’’ हैं। इन मार्क्सवादियों में से कई बुर्जुआ प्रचार के असर में आए हुए साधारण लोग हैं, कई ‘‘अनुभववादी’’ क़िस्म के क्रान्तिकारी हैं जो मार्क्सवाद, मज़दूर वर्गीय आन्दोलन का इतिहास और बीसवीं सदी की क्रान्तियों के समाजवादी प्रयोगों के अध्ययन के ‘‘मुश्किल’’ काम में हाथ डालने से डरते हैं या ग़ैर-ज़रूरी समझते हैं। कई अन्य हैं जो अपनी अधकचरी मार्क्सवादी समझ से विश्लेषण करते हैं और नतीजे के तौर पर ग़लत विश्लेषण करके भ्रम फैलाते हैं। कुछ अन्य ‘‘क्रान्तिकारियों’’ व ‘‘आवारा-चिन्तकों’’ को मार्क्सवाद में इज़ाफ़ा करने की जल्दी है, इस जल्दी में वे मार्क्सवाद की बुनियादी प्रस्थापनाओं को तिलांजलि दे रहे हैं और नये-नये सिद्धान्त पेश कर रहे हैं। ऐलानिया दुश्मनों और ‘‘मार्क्सवाद’’ के लबादे में छिपे हुए कुत्साप्रचार के कारण बहुत सारे ईमानदार क्रान्तिकारियों और साधारण क़तारों व जनता में भी भ्रामक स्थिति बनी हुई है। इसलिए कम्युनिस्ट आन्दोलन के आगे के विकास के लिए बीसवीं सदी की क्रान्तियों और समाजवादी प्रयोगों की सफलताओं और असफलताओं का विश्लेषण करते हुए न सिर्फ़ कुत्साप्रचार का पुख्ता जवाब देगा, बल्कि सही नतीजे निकालने और हासिल किए गए सबकों को आत्मसात करना एक महत्वपूर्ण शर्त है।