“समाजवादी संक्रमण की समस्याएं” विषयक पाँचवीं अरविन्द स्मृति संगोष्ठी इलाहाबाद में शुरू
इलाहाबाद, 10 मार्च। विज्ञान परिषद सभागार, महर्षि दयानन्द मार्ग में “समाजवादी संक्रमण की समस्याएं” विषयक पाँच दिवसीय पाँचवी अरविन्द स्मृति संगोष्ठी आज से शुरू हो गयी। इस संगोष्ठी में देशभर से आये सामाजिक कार्यकर्ताओं, संस्कृतिकर्मियों और विद्वानों के अलावा विदेशों से भी भागीदारी होगी।
संगोष्ठी का औपचारिक उद्घाटन करते हुए अरविन्द स्मृ्ति न्यास की मुख्य न्यासी मीनाक्षी ने अपने स्वागत व़क्तव्य में कहा कि कॉमरेड अरविन्द जैसे योग्य, प्रतिभावान, ज़िम्मेदार और ऊर्जस्वी क्रान्तिकारी को सच्ची श्रृद्धांजलि यही होगी कि सर्वहारा वर्ग की मुक्ति और भारतीय क्रान्ति के जिस लक्ष्य के प्रति वे अपने आखिरी सांस तक समर्पित रहे, उससे जुड़े सैद्धान्तिक व्यावहारिक प्रयोगों का सिलसिला आगे बढ़ाया जाये और युवा क्रान्तिकारियों की नयी पीढ़ी तैयार करने की वैचारिक ज़मीन तैयार की जाये। अरविन्द स्मृति न्यास इसी लक्ष्य के प्रति समर्पित है। न्यास का मुख्य कार्यालय, पुस्तकालय और अभिलेखागार लखनऊ में है।
संगोष्ठी का विषय-प्रवर्तन करते हुए अरविन्द स्मृति न्यास से जुड़ी प्रसिद्ध कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता कात्यायनी ने कहा कि सोवियत संघ में 1956 से ज़ारी छद्म समाजवाद का 1990 के दशक के शुरूआत तक आते-आते जब औपचारिक पतन हुआ तो बुर्जुआ कलमघसीट मार्क्सवाद की “शवपेटिका अन्तिम तौर पर क़ब्र में उतार दिये जाने” और “इतिहास के अन्त” का जो उन्माद भरा शोर मचा रहे थे, हालाँकि वह अब शान्त हो चुका है, परन्तु अब “मुक्ति चिन्तन”, स्वयंस्फूर्ततावाद, गैरपार्टी क्रान्तिवाद और अराजकतावादी संघाधिपत्यवाद के नानाविध भटकाव क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन के भीतर से ही पैदा हो रहे हैं। ऐसे में समाजवादी संक्रमण से जुड़ी तमाम समस्याओं – उस दौरान सर्वहारा वर्ग, उसकी हिरावल पार्टी और सर्वहारा राज्यसत्ता के बीच अर्न्तसम्बन्ध , समाजवादी समाज में उत्पादन-सम्बन्ध और उत्पादक शक्तियों के अर्न्तविरोध, वर्ग संघर्ष के स्वररूप और क्रमश: उन्नततर अवस्थाओं में संक्रमण से जुड़े सभी प्रश्नों पर अतीत के अनुभवों के सन्दर्भ में हमें बहस में उतरना होगा।
संगोष्ठी में पहला आलेख “मुक्तिकामी छात्रों युवाओं का आह्वान” पत्रिका के संपादक अभिनव सिन्हा ने प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था “सोवियत समाजवादी प्रयोग और समाजवादी संक्रमण की समस्यायें : इतिहास और सिद्धान्त की समस्यायें”। इस आलेख में सोवियत संघ में 1917-1930 के दशक के दौरान किये गये समाजवादी प्रयोगों का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। आलेख के अनुसार सोवियत संघ में समाजवादी क्रान्ति अपवादस्वरूप जटिल परिस्थितियों में संपन्न हुई और बोल्शेविक पार्टी ने निहायत ही प्रतिकूल परिस्थितियों में सर्वहारा सत्ता को क़ायम करने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली। सर्वहारा सत्ता के सुदृढ़ीकरण के बाद समाजवादी निर्माण के ऐतिहासिक कार्यभारों को पूरा करने की चुनौती विश्व इतिहास में पहली बार उभर कर आयी। आलेख में सोवियत समाज के प्रयोगों का चरणबद्ध ब्यौरा प्रस्तुत किया गया और प्रत्येक दौर में बॉल्शेविक पार्टी के समक्ष उपस्थित बाह्य और आन्तरिक चुनौतियों समस्याओं का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। इसके अतिरिक्त इस दौर में पार्टी द्वारा की गयी विचारधारत्मक, रणकौशलात्मक और रणकौशलात्मक गलतियों का भी विश्लेषण किया गया। साथ ही साथ आलेख में यह भी स्पष्ट किया गया कि आम तौर पर जिन-जिन बिन्दुओं पर सोवियत समाज की आलोचना आम तौर पर पेश की जाती है उन बिन्दुओं पर वस्तुत: उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। साथ ही सोवियत संघ में समाजवादी प्रयोगों की मौजूदा व्याख्याओं-आलोचनाओं की आलोचना प्रस्तुत करते हुए प्रदर्शित किया गया कि इन आलोचनाओं में कुछ भी नया नहीं है और अधिकांश तर्कों का जवाब लेनिन और स्तालिन के ही दौर में दिया जा चुका था। आलेख प्रस्तु्त करने के बाद आलेख पर बहस का सिलसिला शुरू हुआ
जिसमें सिडनी विश्वविद्यालय के छात्र मिथिलेश कुमार, विस्थापन विरोधी आंदोलन ठाणे के शिरीष मेढ़ी, इंडियन एयरपोर्ट इम्पलाइज़ एसोसिएशन मुंबई की दीप्ति गोपीनाथ, सिरसा से आये कश्मीर सिंह, जयपुर से आये पी के शगुन, अहमदाबाद से आये डी के राठौड़ ने अपनी टिप्पणियों के साथ बहस में हस्तक्षेप किया। ग़ौरतलब है कि अगले दो दिनों में समाजवादी संक्रमण से जुड़े अन्य पहलुओं पर आलेख प्रस्तुत किये जायेंगे। इन आलेखों में प्रमुख हैं: माओवाद पर पंजाबी पत्रिका ‘प्रतिबद्ध’ के संपादक सुखविन्दर, स्तालिन और सोवियत समाजवाद पर लुधियाना के डा. अमृतपाल, ‘उत्तर-मार्क्सवादियों’ के कम्युनिज़्म पर दिल्ली विश्वविद्यालय की शिवानी एवं बेबी कुमारी, क्यूबा, वेनेजुएला आदि के परिधिगत समाजवादी प्रयोगों पर दिल्ली विश्वविद्यालय के सनी सिंह एवं अरविन्द राठी, सोवियत एवं चीनी पार्टियों के बीच चली महान बहस पर गुड़गांव के राजकुमार, माओवाद एवं माओ विचारधारा के प्रश्न पर मुंबई के हर्ष ठाकोर और नेपाल में चल रहे मौजूदा राजनीतिक संकट पर नेपाल पत्रकार महासंघ के केन्द्रीय सभासद संगीत श्रोता और नोएडा के आनंद सिंह के आलेख । संगोष्ठी में चौथे और पांचवे दिन का समय आलेखों पर विस्तार पूर्वक बहस के लिए रखा गया है।
संगोष्ठी में आज के सत्र की अध्य्क्षता नेपाल से आये प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव मित्रलाल पंज्ञानी, सिरसा से आये डा. सुखदेव और अरविन्द स्मृ्ति न्यास की मुख्य न्यासी मीनाक्षी ने की। सत्र का संचालन सत्यम वर्मा ने किया।